Akshaya Tritiya 2023: अक्षय तृतीया पर निभाई गई परंपरा, बाबा विश्वनाथ को तपिश से राहत दिलाने का अनुष्ठान
अक्षय तृतीया के मान-विधान के तहत धर्म नगरी काशी ने अनूठी परंपरा का निर्वाह किया गया। देवाधिधेव महादेव को वैशाख-जेठ की तपिश से राहत दिलाने का भक्तों ने जतन किया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर गर्भगृह में जलधरी (फव्वारा) लगाई गई।
अक्षय तृतीया पर श्री काशी विश्वनाथ को गंगधार की जलधरी अर्पित की गई। वहीं भगवान विष्णु को भक्तों ने चंदन का लेप लगाया। भक्तों की सुख-समृद्धि की कामना से अक्षय तृतीया के अनुष्ठान को पूर्ण किया गया। श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग पर लगाई गई जलधरी से अक्षय तृतीया से सावन की पूर्णिमा तक गंगधार निरंतर प्रवाहित होगी।
देवाधिधेव महादेव को वैशाख-जेठ की तपिश से राहत दिलाने की कामना से ऐसा किया जाता है। परंपरा अनुसार सावन पूर्णिमा तक यह सिलसिला जारी रहेगा। रविवार को भोर में मंगला आरती से पहले अक्षय तृतीया के मान विधान विधान के अनुसार शीतल शृंगार किया गया।
बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर उदया तिथि के अनुसार बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह में विधि-विधान से पूजन करने के बाद रजत जलधरी लगाई गई। इसके अलावा शहर के सभी शिवमंदिरों में बाबा की जलधरी लगाई गई। मंगला आरती के साथ ही मंदिर में शुरू हुआ दर्शन पूजन का सिलसिला अनवरत जारी रहा।
अक्षय तृतीया के दिन बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन करके भक्तों ने आशीर्वाद लिए। वहीं, दूसरी तरफ भगवान विष्णु के मंदिरों में भगवान को चंदन अर्पित किया गया। भक्तों ने लक्ष्मीनारायण का विधि-विधान से पूजन कर आशीष लिया। शहर के लक्ष्मी मंदिरों में आस्थावानों ने मत्था टेका। पांडेयपुर स्थित लक्ष्मी मंदिर और लक्सा स्थित लक्ष्मीकुंड में भी श्रद्धालुओं ने हाजिरी लगाई। घरों में भी बाबा विश्वनाथ का ध्यान कर अक्षय पुण्य की कामना की गई।
अक्षय तृतीया पर श्रद्धालुओं ने गंगा में पुण्य की डुबकी भी लगाई। भगवान भास्कर की प्रथम किरणों के साथ शुरू हुआ स्नान का सिलसिला देर शाम तक अनवरत जारी रहा। गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं ने दान करने की परंपरा भी निभाई और इसके बाद श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए कतारबद्ध हो गए।
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